Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

Class 9 Sanskrit Chapter 2 द्वितीयः पाठः स्वर्णकाकः (सोने का कौवा)

प्रस्तुत पाठ श्री पद्मशास्त्री द्वारा रचित ‘विश्वकथाशतकम् ‘ नामक कथा-संग्रह से लिया गया है, जिसमें विभिन्न देशों की सौ लोक-कथाओं का संग्रह है। यह बर्मा देश की एक श्रेष्ठ कथा है, जिसमें लोभ और उसके दुष्परिणाम के साथ-साथ त्याग और उसके सुपरिणाम का वर्णन, एक सुनहले पंखों वाले कौवे के माध्यम से किया गया है।

द्वितीयः पाठः स्वर्णकाकः (सोने का कौवा)

Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

पाठ का सप्रसङ्ग हिन्दी अनुवाद

(1) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

पुरा कस्मिश्चिद् ग्रामे …………………………………….  समीपम् आगच्छत्।

कठिन शब्दार्थ-

पुरा प्राचीन समय में (प्राचीन काले)।
ग्रामे गाँव में।
न्यवसत् रहती थी (अवसत्) ।
दुहिता पुत्री (सुता)।
एकदा एक बार।
स्थाल्यां थाली में।
तण्डुलान् चावलों को (अक्षतान्) ।
निक्षिप्य रखकर।
आदिदेश आदेश दिया।
सूर्यातपे धूप में।
खगेभ्यः पक्षियों से।
रक्ष रक्षा करो।
किञ्चित्कालादनन्तरम् कुछ समय बाद।
काकः कौवा।
समुड़ीय उड़कर (उत्प्लुत्य)।

प्रसङ्ग-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लोभ रूपी बुराई से  दूर रहने की प्रेरणा दी गई है। इस अंश में किसी निर्धन वृद्धा द्वारा अपनी पुत्री को धूप में चावलों की पक्षियों से रक्षा हेतु कहे जाने का एवं वहाँ एक विचित्र कौए के आने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

पुराने समय में किसी गाँव में एक निर्धन वृद्धा स्त्री रहा करती थी। उसकी एक विनम्र, सुन्दर पत्री थी। एक दिन माता ने थाली में चावल रखकर पुत्री को आदेश दिया-“पत्री, सूर्य की धूप में (रखे) चावलों की पक्षियों से रक्षा करना। कुछ समय बाद एक विचित्र कौवा उड़कर उसके समीप आया।

(2) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

नैतादृशः स्वर्णपक्षो …………………………………… न लेभे।

कठिन शब्दार्थ-

नैतादृशः इस प्रकार का नहीं।
स्वर्णपक्षः सोने के पंख वाला (स्वर्णमयः पक्षः) ।
रजतचञ्चुः चाँदी की चोंच वाला (रजतमय: चञ्चुः)।
 दृष्ट: देखा (अवलोकितः)।
तण्डुलान् चावलों को।
खादन्तं खाते हुए।
हसन्तञ्च और हंसते हए।
विलोक्य देखकर (दृष्ट्वा )।
रोदितुम् रोना।
आरब्धा प्रारम्भ कर दिया।
निवारयन्ती रोकती हुई (वारणं कुर्वन्ती) ।
मा मत ।
भक्षय खाओ।
मदीया मेरी।
प्रोवाच कहा (अकथयत्) ।
मा शुचः दु:ख मत करो (शोकं न कुरु)।
बहिः बाहर।
पिप्पलवृक्षम् पीपल का वृक्ष।
दास्यामि दूंगा।
प्रहर्षिता प्रसन्न हुई (प्रसन्ना)।

प्रसङ्ग-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’। (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ नामक पाठ से संकलित किया गया है। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से, लोभ रूपी बुराई से दूर रहने की शिक्षा दी गई है। इस अंश में निर्धन वृद्धा की पुत्री एवं स्वर्णमय पंखों वाले कौवे के मध्य हए। वार्तालाप को चित्रित किया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

ऐसा सोने के पंख तथा चाँदी की चोंच वाला सोने का कौवा उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसे चावल खाते हुए तथा हंसते हुए देखकर बालिका (लड़की) रोने लगी। उसको हटाती हुई लडकी ने प्रार्थना की “तुम चावलों को मत खाओ।” मेरी माता अत्यन्त निर्धन है। सोने के पंखों वाले कौवे ने कहा- “तुम दुःखी मत होओ।” तुम कल सूर्य उगने से पहले गाँव से बाहर पीपल वृक्ष के पीछे आ जाना। मैं तुम्हें चावलों का मूल्य दे दूंगा। प्रसन्न हुई बालिका को (रात में) नींद भी नहीं आई।

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(3) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

सूर्योदयात्पूर्वमेव ……………………………………  स्वर्णभवनम् आरोहत्।

कठिन शब्दार्थ-

सूर्योदयात्पूर्वमेव सूर्योदय से पहले ही।
उपरि ऊपर।
सजाता हो गई (अभवत्) ।
प्रासादः महल (भवनम्)।
शयित्वा सोकर।
प्रबुद्धः जाग गया। 
गवाक्षात् खिड़की से (वातायनात्) ।
आगता आ गई। 
त्वत्कृते तुम्हारे लिए।
सोपानम् सीढ़ी।
अवतारयामि उतारता हूँ (अवतीर्ण करोमि)।
उत अथवा।
दुहिता पुत्री ।
आरोहत् पहुँची (प्राप्नोत)।

प्रसङ्ग

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के स्वर्णकाकः’ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका का स्वर्णमय कौवे के स्थान पर जाना एवं उन दोनों के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

(अगले दिन) सूर्य उगने से पूर्व ही वह लड़की वहाँ उपस्थित हो गई। वहाँ वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्य से चकित हो गई, क्योंकि वहाँ एक सोने का बना महल था। जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिडकी में से बालिका को अत्यन्त हर्षपूर्वक कहा- अहो! तुम आ गईं, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए सीढी उतारता हूँ। तुम बताओ-सीढ़ी सोने की हो या चाँदी की अथवा ताँबे की? कन्या बोली-“मैं एक निर्धन माता की पुत्री हूँ, ताँबे की सीढी से ही आ जाऊँगी।” परन्तु (सोने के कौवे के द्वारा उतारी हई) सोने की सीढ़ी से वह सोने के महल (स्वर्णमय भवन) में पहुँच गई।

(4) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

चिरकालं भवने …………………………..  स्वगृहं गच्छ।

कठिन शब्दार्थ-

चिरकालं बहुत समय तक।
सज्जितानि सजाकर रखी हुई।
श्रान्तां थकी हुई।
प्राह कहा (उवाच)।
लघु थोड़ा-सा, अल्प।
प्रातराशः सुबह का नाश्ता ।
वद बोलो।
स्वर्णस्थाल्यां सोने की थाली में।  
उत अथवा ।
ताम्र ताँबा ।
व्याजहार कहा (अकथयत्) । 
पर्यवेषितम परोसा गया (पर्यवेषणं कृतम्) । 
स्वादु स्वादिष्ट।
अद्यावधिः आज तक।
खादितवती खाया गया।
ब्रते बोला।

प्रसङ्ग

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमषी’। (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका का स्वर्णमय कौवे के स्थान पर पहुँच कर वहाँ के दृश्य से आश्चर्यचकिता होने का तथा भोजन के विषय में हुए उन दोनों के वार्तालाप का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

बहुत काल तक, महल में सजी अनोखी वस्तुओं को देखकर बालिका हैरान हो गई। उसको थका हुआ देखकर कौवा बोला-“पहले तुम थोड़ा प्रात:कालीन नाश्ता कर लो, बताओ तुम सोने की थाली में भोजन करोगी या फिर चाँदी की थाली में अथवा ताँबे की थाली में? बालिका ने कहा “मैं निर्धन, ताम्बे की थाली में ही खा लूंगी।” लेकिन तब वह बालिका आश्चर्य से चकित हो गई सोने के कौवे ने उसे सोने की थाली में भोजन परोसा। बालिका ने आज तक ऐसा स्वादिष्ट भोजन नहीं खाया था।  कौवा बोला—”हे बालिका! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा  यहीं पर रहो, परन्तु (घर पर) तुम्हारी माता अकेली है। अत: तुम शीघ्र ही अपने घर चली जाओ।” ।

(5) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

इत्युक्त्वा काकः ……………………………… सजाता।

कठिन शब्दार्थ-

इत्युक्त्वा ऐसा कहकर।
कक्षाभ्यन्तरात् कमरे के अन्दर से।
मञ्जूषा सन्दूकें।
निस्सार्यं निकालकर।
यथेच्छम् अपनी इच्छा के अनुसार।
लघुतमा सबसे छोटी।
प्रगृह्य लेकर।
तण्डुलानां चावलों का।
आगत्य आकर।
समुद्घाटिता खोली।
महार्हाणि बहुमूल्य।
हीरकाणि हीरे।
विलोक्य देखकर।
तद्दिनात् उस दिन से।
धनिका धनवान्।

प्रसङ्ग-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस अंश में निर्धन बालिका के निर्लोभ व्यवहार से सन्तुष्ट स्वर्णमय कौवे द्वारा उसे बहुमूल्य हीरों से भरा सन्दुक देने का तथा उससे उस बालिका के धनवान हो जाने का वर्णन हुआ है।

हिन्दी अनुवाद-

ऐसा कहकर कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें निकालकर उस लड़की को कहा”बालिका! तुम स्वेच्छा से कोई एक सन्दूक ले लो।” बालिका ने सब में छोटी सन्दूक लेते हुए कहा- “मेरे | चावलों का इतना ही मूल्य है।” घर पर आकर जब उसने उस सन्दूक को खोला तो उसमें बहुमूल्य हीरों को देखकर वह अत्यन्त प्रसन्न हुई और उस दिन से वह धनी हो गई।

(6) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

तस्मिन्नेव ग्रामे ………………………………. अकारयत्।

कठिन शब्दार्थ-

अपरा अन्य।
न्यवसत् रहती थी।
ईर्ष्णया ईर्ष्या से।
अभिज्ञातवती जान गई।
सूर्यातपे धूप में।
निक्षिप्य फेंककर।
रक्षार्थम् रक्षा करने के लिए।
तथैव उसी प्रकार।
स्वर्णपक्षः स्वर्णमय पंखों वाला।
काकः कौवा ।
भक्षयन् खाता हुआ।
आकारयत् बुलाया।
निर्भत्संयन्ती निन्दा करती हुई (भर्त्सनां कुर्वन्ती)।
प्रावोचत् कहा।
प्रयच्छ दीजिए।
अब्रवीत्। बोला।
सोपानम् सीढ़ी।
उत्तारयामि उतारता हूँ।
कथय कहो।
परम किन्तु।
प्रायच्छत् प्रदान की।
ताम्रभाजने तांबे के बर्तन में।
अकारयत् कराया।

प्रसङ्ग-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इस अंश में एक लोभी वृद्धा के द्वारा स्वर्णमय कौवे के गुप्त वृत्तान्त को जानकर किये गये दुव्यवहार एवं लोभपूर्ण आचरण का वृत्तान्त वर्णित है। कौवे द्वारा उसके लोभी व्यवहार को देखकर उसकी पुत्री को वह  किस प्रकार तांबे के बर्तन में भोजन कराया गया, यह सब भी इस अंश में दर्शाया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

उसी गाँव में एक अन्य लोभी बुढ़िया  रहा  करती थी। उसकी भी एक पुत्री थी। (पहली वृद्धा की समृद्धि को देख) ईर्ष्यावश उसने सोने के कौवे का रहस्य पता लगा लिया। उसने भी धूप में चावलों को रखकर अपनी पुत्री  को रखवाली हेतु लगा दिया। उसी तरह से सोने के पंख वाले कौवे ने चावल खाते हुए, उसको भी वहीं पर बुला लिया। सुबह वहाँ जाकर वह लड़की कौवे को धिक्कारती हुई जोर से बोली-

“अरे नीच कौवे! लो मैं आ गई, मुझे मेरे चावलों का मूल्य दो।” कौआ बोला-“मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ।” तो तुम बताओ कि तुम सोने की बनी सीढ़ी से आओगी, चाँदी की सीढी से या फिर ताम्बे की सीढ़ी से? गर्वभरी (घमण्डयुक्त) बालिका ने कहा “मैं तो  सोने की बनी सीढ़ी से आऊँगी”, किन्तु सोने के कौवे ने उसके लिए ताम्बे की बनी सीढ़ी ही दी। सोने के कौवे ने उसे भोजन भी ताम्बे के बर्तन में ही कराया।

(7) Class 9 Sanskrit Chapter 2 Hindi translation

प्रतिनिवृत्तिकाले ……………………………………… पर्यत्यजत्।

कठिन शब्दार्थ-

प्रतिनिवृत्तिकाले लौटने के समय ।
तिस्त्रः तीन।
मञ्जूषाः सन्दूकें।
तत्पुरः उसके सामने ।
समुक्षिप्ता: रखी।
लोभाविष्टा लोभ से परिपूर्ण (लोभेन परिपूर्णा)।
बृहत्तमां सबसे बड़ी।
आगत्य आकर।
तर्षिता लालची।
उद्घाटयति खोलती है।
भीषणः भयंकर।
कृष्णसर्पः काला सॉप।
विलोकितः देखा ।
लुब्धया लालची।
पर्यत्यजत् छोड़ दिया।

प्रसङ्ग-

प्रस्तुत गद्यांश हमारी संस्कृत की पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ (प्रथमो भागः) के ‘स्वर्णकाकः’ शीर्षक पाठ से उद्धत है। इस अंश में स्वर्णमय कौए के द्वारा प्राप्त लालची बालिका के फल को दर्शाते हुए लोभ न करने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनुवाद-

लौटने (विदाई) के समय सोने के कौवे ने कक्ष (कमरे) के अन्दर से तीन सन्दूकें लाकर उसके सामने रखीं। लोभ से परिपूर्ण मन वाली उस लड़की ने उनमें से सबसे बड़ी सन्दूक ली। घर पर आकर वह लालची लड़की जब उस सन्दूक को खोलती है तो उसमें वह एक भयंकर काले साँप को देखती है। लालची बालिका को लालच का फल मिल गया। उसके पश्चात् उसने लोभ को बिल्कुल त्याग दिया।

Class 9 Sanskrit Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए)

(क) माता काम् आदिशत्?

उत्तर- पुत्रीम्।

(ख) स्वर्णकाकः कान् अखादत्?

उत्तर- तण्डुलान्।

(ग) प्रासादः कीदृशः वर्तते?

उत्तर- स्वर्णमयः।

(घ) गृहमागत्य तया का समुद्घाटिता?

उत्तर- मञ्जूषा ।

(ङ) लोभाविष्टा बालिका कीदृशीं मञ्जूषां नयति?

उत्तर- बृहत्तमाम्।

(अ) अधोलिखिताना प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत्? (निर्धन वृद्धा की पुत्री कैसी थी?)

उत्तर- निर्धनाया: वृद्धायाः दुहिता विनम्रा मनोहरा च आसीत्। (निर्धन वृद्धा की पुत्री विनम्र एवं सुन्दर थी।)

(ख) बालिकया पूर्व कीदृशः काकः न दृष्टः आसीत्? (बालिका के द्वारा पहले कैसा कौआ नहीं देखा गया था?)

उत्तर- बालिकया पूर्व स्वर्णकाकः न दृष्टः आसीत्। (बालिका के द्वारा पहले स्वर्णमय कौवे को नहीं देखा गया था।)

(ग) निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां कानि अपश्यत्? (निर्धन स्त्री की पुत्री ने सन्दूक में क्या देखा?)

उत्तरम्- निर्धनायाः दुहिता मञ्जूषायां महार्हाणि हीरकाणि अपश्यत्। (निर्धन स्त्री की पुत्री ने सन्दूक में बहुमूल्य हीरे देखे।)

(घ) बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता? (बालिका क्या देखकर आश्चर्य-चकित हो गई?)

उत्तर- बालिका स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता। (बालिका स्वर्णमय महल देखकर आश्चर्यचकित हो गई।)

(ङ) गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम् अयाचत् कीदृशं च प्राप्नोत्? (घमण्डी बालिका ने कैसी सीढ़ी माँगी और कैसी प्राप्त की?)

उत्तर- गर्विता बालिका स्वर्णसोपानम् अयाचत् परं ताम्रमयं प्राप्नोत्। (घमण्डी बालिका ने सोने की सीढ़ी माँगी किन्तु ताँबे की प्राप्त की।)

प्रश्न 2. NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit

(क) अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत

उत्तर-

शब्द  विलोमपद
(i) पश्चात् पूर्वम्
(ii)  हसितुम् रोदितुम्
(iii)  अधः उपरि
(iv) श्वेतः कृष्णः
(v) सूर्यास्त: सूर्योदयः
(vi) सुप्तः  प्रबुद्धः

प्रश्न 3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) ग्रामे निर्धना स्त्री अवसत्।

उत्तर- ग्रामे का अवसत्?

(ख) स्वर्णकाकं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत् ।

उत्तर- कं निवारयन्ती बालिका प्रार्थयत्?

(ग) सूर्योदयात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता।

उत्तर- कस्मात् पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता?

(घ) बालिका निर्धनमातुः दुहिता आसीत्?

उत्तर- बालिका कस्याः दुहिता आसीत्?

(ङ) लुब्धा वृद्धा स्वर्णकाकस्य रहस्यमभिज्ञातवती।

उत्तर- लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती?

प्रश्न 4. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं कुरुत (पाठात् चित्वा वा लिखत)।

उत्तर-

(क) वि + लोक् + ल्यप्विलोक्य
(ख) नि + क्षिप् + ल्यप्निक्षिप्य
(ग) आ + गम् + ल्यप् आगत्य
(घ) दृश् + क्त्वादृष्ट्वा
(ङ) शी + क्त्वा शयित्वा
(च) लघु + तमप् लघुतमम्/लघुतमः

प्रश्न 5. प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत-

उत्तर-

पद प्रकृति-प्रत्यय
(क) रोदितुम्  रुद् + तुमुन्
(ख) दृष्ट्वा दृश् + क्त्वा
(ग) विलोक्य  वि + लोक् + ल्यप्
(घ) निक्षिप्य  नि + क्षिप् + ल्यप्
(ङ)  आगत्य  आ + गम् + ल्यप्
(च) शयित्वा  शी + क्त्वा
(छ) लघुतमम्  लघु + तमप्

प्रश्न 7. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु पञ्चमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि प्रयत-

यथा- मूषकः बिलाद् बहिः निर्गच्छति। (बिल)

(क) जनः ………………… बहिः आगच्छति। (ग्राम)

(ख) नद्यः ………………… निस्सरन्ति। (पर्वत)

(ग) ………………… पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)

(घ) बालकः …………………. विभेति। (सिंह)

(ङ) ईश्वरः ……………….. त्रायते। (क्लेश)

(च) प्रभुः भक्तं ………………… निवारयति। (पाप)

उत्तर

(क) जनः ग्रामाद् बहिः आगच्छति ।

(ख) नद्यः पर्वतेभ्यः निस्सरन्ति।

(ग) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।

(घ) बालकः सिंहाद् विभेति।

(ङ) ईश्वर: क्लेशात् त्रायते।

(च) प्रभुः भक्तं पापात् निवारयति ।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

Class 9 Sanskrit Chapter 2 Questions Answer

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. निर्धनवृद्धायाः पुत्री कीदृशी आसीत्?

उत्तर- सा विनम्रा मनोहरा चासीत्।

प्रश्न 2. वृद्धा स्त्री स्वपुत्रीं किमादिदेश?

उत्तर- सा आदिदेश यत्-‘सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।’

प्रश्न 3. बालिकया कीदृशः काकः पूर्वं न दृष्टः?

उत्तर- बालिकया स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः पूर्व न दृष्टः।

प्रश्न 4. बालिका किम् विलोक्य रोदितुमारब्धा?

उत्तर- बालिका स्वर्णकाकं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य रोदितमारब्धा।

प्रश्न 5. स्वर्णकानेन बालिकायाः कृते कस्यां भोजनं पर्यवेषितम्?

उत्तर- तेन स्वर्णस्थाल्यो भोजनं पर्यवेषितम्।

कथाक्रम संयोजनम्

प्रश्न 1. निम्नलिखितक्रमरहित वाक्यानां क्रमपूर्वकं संयोजनं कुरुत-

(i) स्वर्णकाकः तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्।

(ii) लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।

(iii) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।

(iv) तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता धनिका च सञ्जाता।

(v) लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती, तस्यां च सर्पः विलोकितः।

(vi) तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।

(vii) लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिका गृहं गता।

(viii) नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती।

उत्तर

(vi) तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा।

(iii) अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।

(viii) नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती।

(vii) लघुतमा मञ्जूषां प्रगृह्य बालिका गृहं गता।

(iv) तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता धनिका च सञ्जाता।

(i) स्वर्णकाकः तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्।

(v) लोभाविष्टा सा बृहत्तमा मञ्जूषां गृहीतवती, तस्यां च सर्पः विलोकितः।

(ii) लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्।

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