What is animation? एनीमेशन क्या है?
मल्टीमीडिया एनीमेशन
(1) परिचय (introduction)
(2) एनीमेशन की धारणा (Concepts of Animation)
(3) एनीमेशन तकनीक (Animation Technique)
(4) कम्प्यूटर द्वारा एनीमेशन (Computer Animation)
(5) ट्वीनिंग (Tweening)
(6) लूपिंग (Looping)
(7) ट्रांजिशन (Transition)
(8) वैगन व्हील इफेक्ट (Wagon Wheel Effect)
(9) सेल एनीमेशन (Cell Animation)
(10) मॉर्फिंग (Morphing)
(11) एनीमेशन के प्रकार (Types of Animation)
(12) फ्लैश एण्ड एनीमेशन (Animation and Flash)
(1) परिचय (introduction)- एनीमेशन के लिए हम कह सकते हैं कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें स्थिर इमेजेस को मोशन रूप प्रदान किया जाता है। इसके अन्तर्गत एक निश्चित समयान्तराल के दौरान चित्रों में परिवर्तन होता है। जिस कारण कभी वे एक जगह तो कभी कहीं और दिखाई देते हैं। इसका प्रयोग कर मल्टीमीडिया प्रोजेक्ट को आकर्षित बनाया जा सकता है। इसकी सहायता से ही हम ना केवल इमेजेस को बल्कि टेक्स्ट को भी गति प्रदान कर सकते हैं।
(2) एनीमेशन की धारणा (Concepts of Animation)- एक बॉयोलॉजिकल अवधारणा, जिसे Persispence of Vision और एक साइकोलॉजिकल अवधारणा जिसे Phi कहते हैं इसके कारण ही एनीमेशन संभव है।
एनीमेशन मूवमेंट्स का सिम्यूलेशन है, जिसमें पिक्चर की श्रृंखला के ऑब्जेक्ट्स कुछ अलग तरीके से व्यवस्थित होते हैं। एनीमेशन टाइम के दौरान किए गए परिवर्तन, मूवमेंट्स, 3D ऑब्जेक्ट्स के विसुपलाइजेशन के लिए बेहतर है। एनीमेशन को नॉर्मल मोड में भी निर्मित कर सकते हैं, जहाँ कि किसी तरह का यूजर इनट्रेक्शन ना हो। एनीमेशन जटिल विचारों को व्यक्त करने का बहुत अच्छा तरीका है।
एनीमेशन के मुख्यतः तीन फंक्शन्स होते हैं
(i) Attention Gaining
(ii) Presentation
(iii) Practice
(3) एनीमेशन तकनीक (Animation Technique)- एनीमेशन के लिए निम्न तकनीक प्रयोग में ली जाती है
(A) फ्रेम-बाय-फ्रेम तकनीक- इस तकनीक में डिजाइनर को एनीमेशन के लिए सभी फ्रेम स्वयं बनाने होते हैं। इसके बाद उन्हें एक निश्चित क्रम जमाना होता है ।
(B) की फ्रेम आधारित तकनीक- इस तकनीक में डिजाइनर को एक सैकण्ड का एनीमेशन बनाने के लिए सभी फ्रेम स्वयं बनाने की जरूरत नहीं होती है। इसमें डिजाइनर को केवल मुख्यतः फ्रेम्स बनाने होते हैं, तथा उन मुख्यतः फ्रेम्स के मध्य शेष फ्रेम्स सॉफ्टवेयर स्वयं बना देता है।
(4) कम्प्यूटर द्वारा एनीमेशन (Computer Animation)- एनीमेशन स्थिर इमेजेस की सीरिज से निर्मित किसी ऑब्जेक्ट के कन्टीन्यूअस मूवमेंट का भ्रम होता है। प्रत्येक स्थिर इमेज को फ्रेम कहते हैं।
(i) 2D एनीमेशन- एनीमेशन फिगर्स को 2D बिटमेप ग्राफिक्स या 2D वेक्टर ग्राफिक्स की सहायता से निर्मित तथा एडिट किया जाता है। 2D एनीमेशन के अन्तर्गत निम्न एप्लीकेशन को सम्मिलित किया जाता है।
एनालॉग कम्प्यूटर एनीमेशन।
फ्लैश एनीमेशन ।
पॉवर पॉइन्ट एनीमेशन ।
2D इमेज में एनीमेशन करते हैं तो उनमें केवल दो ही अक्षर X और Y होते हैं।
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(ii) 3D एनीमेशन– 3D एनीमेशन एनीमेटर द्वारा डिजिटली माइल्ड तथा मेनिप्यूलेटेड होते हैं। 3D इमेजेस को एनीमेटेड करना 2D एनीमेशन की तुलना में कठिन होता है। 3D एनीमेशन में तीन अक्षर हैं-X, Y, Z अक्षर। यहाँ Z अक्षर का प्रयोग ऑब्जेक्ट को पूर्ण रूप से प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। 3D व्यू के अन्तर्गत ऑब्जेक्ट फ्रंट, बैक तथा अन्य सभी हिस्सों में दिखाई पड़ता है। किसी भी एनीमेशन के निर्माण हेतु ऑब्जेक्ट्स को एक लॉजिकल ऑर्डर में रखा जाता है।
(5) ट्वीनिंग (Tweening)- ट्वीनिंग एनीमेशन को IN Betweening भी कहते हैं। एनीमेशन में दो फ्रेम्स के मध्य फ्रेम्स तैयार करने की प्रक्रिया ट्वीनिंग कहलाती है। इन फ्रेम्स को बनाने के लिए जिन फ्रेम्स का प्रयोग किया जाता है उन्हें फ्रेम कहते हैं। जिससे कि आर्टिस्ट को की-फ्रेम्स के मध्य के फ्रेम्स बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। जब इन फ्रेम्स को इन किया जाता है तो हमें एनीमेशन दिखाई देता है।
(6) लूपिंग (Looping)- इस तकनीक में एक बार बनाए गए एनीमेशन क्लिप को बार-बार प्रयोग किया जाता है। जैसे—यदि किसी व्यक्ति को चलते हुए दिखाना है तो पहले एक छोटी क्लिप बनाई जाएगी जिसमें उस व्यक्ति को दो कदम आगे बढ़ते हुए दिखाई देगी। फिर उसी क्लिप को दुबारा प्रयोग करते हैं तो वह व्यक्ति चलता हुआ दिखाई देगा इस प्रक्रिया को लूपिंग कहते हैं।
(7) ट्रांजिशन (Transition)- इस तकनीक के माध्यम से एनीमेशन के दो दृश्यों को जोड़ा जाता है। इससे दो दृश्यों के मध्य विशेष प्रभाव दिया जाता है।
(8) वैगन व्हील इफेक्ट (Wagon Wheel Effect)- जब किसी दृश्य का कोई भाग बहुत तेज गति से परिवर्तित होता है तो हमारी आँखें उन सभी फ्रेम्स को देख नहीं पाती हैं। जैसे—इस प्रक्रिया के अन्तर्गत गाड़ी का पहिया कभी सीधा तो कभी उल्टा घूमता दिखाई पड़ता है।
(9) सेल एनीमेशन (Cell Animation)- इस तकनीक को ट्रेडिशनल या हैण्ड ड्रॉन एनीमेशन कहते हैं। यह तकनीक अमेरिका द्वारा निर्मित की गई थी। इसके अन्तर्गत ग्राफिक्स में बढ़ते क्रम (Asceending Order) में थोड़ा-थोड़ा सा परिवर्तन कर मूवी फ्रेम में प्रयोग किया जाता है। इसके अन्तर्गत एक सैकण्ड में 24 फ्रेमों का प्रयोग एक साथ होता है। इसमें हम सेल्युलाइड शीट का प्रयोग करते हैं। अतः यहाँ सेल शब्द का प्रयोग किया गया है। वर्तमान में सेल्युलाइड शीट की जगह प्लास्टिक तथा एक्टैट 2AC का प्रयोग करते हैं।
इसके द्वारा एनीमेशन की मुख्य इकाई की फ्रेम है। यह किसी भी फंक्शन का फर्स्ट तथा लास्ट फ्रेम होता है। की-फ्रेम के मध्य उपयोग होने वाले फ्रेम्स को बनाने की प्रक्रिया ट्वीनिंग कहलाती है। इस प्रक्रिया के द्वारा की फ्रेम्स के मध्य उपयोग होने वाले फ्रेम्स की संख्या तथा निर्माण विधि तय की जाती है।
नोट- एनीमेशन में जब कई ऑब्जेक्ट्स आपस में मिलकर गतिशील होते हैं, तो इस प्रक्रिया को कायनेमेटिक्स कहते हैं।
(10) मॉर्फिंग (Morphing)- यह एनीमेशन की एक और तकनीक है। वर्तमान समय में इस तकनीक का प्रयोग बहुत अधिक हो रहा है। एक इमेज के होते हुए दूसरी इमेज में बदल जाना मॉर्फिंग कहलाता है ।
जैसे- इस तकनीक की सहायता से मनुष्य का चेहरा धीरे-धीरे बदलकर शेर के चेहरे में परिवर्तित हो जाता है। इसके लिए हमें केवल दो ऑब्जेक्ट्स की आवश्यकता होती है, इसमें पहला ऑब्जेक्ट मनुष्य का चेहरा है और दूसरा ऑब्जेक्ट शेर का चेहरा, बीच में चेहरा किस तरह से परिवर्तित होगा यह कार्य सॉफ्टवेयर स्वयं करता है। इसके लिए फ्रेमों की संख्या अपनी जरूरत के हिसाब से तय कर सकते हैं। इस तकनीक के अन्तर्गत जितने ज्यादा फ्रेम्स उपयोग में होते हैं, परिणाम उतना ही अच्छा होता है।
एनीमेशन के प्रकार (Types of Animation)
एनीमेशन के प्रकारों को प्रदर्शित करने के लिए
रियल टाइम एनीमेशन (Real Time Animation)
कैरेक्टर एनीमेशन (Character Animation)
की-फ्रेम एनीमेशन (Key Frame Animation)
मोशन पाथ एनीमेशन (Motion Path Animation)
हिरारिकल एनीमेशन (Hierarchical Animation)
शेप एनीमेशन (Shape Animation)
सिम्यूलेशन (Simulation)
प्रोसिजरल एनीमेशन (Procedural Animation)
कैमरा एनीमेशन (Camera Animation)
1. रियल टाइम एनीमेशन (Real Time Animation) – एक एनीमेशन तभी रियल टाइम होता है जबकि कम्प्यूटर के द्वारा एनीमेशन को उसी स्पीड से कम्प्यूट तथा डिस्प्ले करे, जिस स्पीड पर उसे डिजाइन किया गया हो। केवल सिम्पल एनीमेशन ही रियल टाइम में डिस्प्ले हो सकते हैं।
2. की-फ्रेम एनीमेशन (Key Frame Animation)- इस तकनीक की सहायता से किसी पर्टिक्यूलर पॉइन्ट पर किसी निश्चित समय के लिए ऑब्जेक्ट के साइज, पॉजीशन तथा ऑरिएनटेशन को एनीमेटेड किया जाता है। इसके मध्य के सभी फ्रेम्स को इन्टरपॉलेशन के द्वारा भरा जाता है।
3. कैरेक्टर एनीमेशन (Character Animation)- इस एनीमेशन तकनीक के अन्तर्गत एक्सप्रेशन के डिस्प्ले इमोशन्स तथा बिहेवियर को एसोसिएट किया जाता है।
4. मोशन पाथ एनीमेशन (Motion Path Animation)- इस तकनीक में ऑब्जेक्ट्स एक पाथ के सहारे मूव करते हैं।
5. हिरारिकल एनीमेशन (Hierarchical Animation)- इस तकनीक की सहायता से ऑब्जेक्ट्स हिरारिकल को एनीमेट किया जाता है।
6. शेप एनीमेशन (Shape Animation)- इस प्रकार के एनीमेशन के अन्तर्गत एक आकृति को दूसरी आकृति में परिवर्तित किया जाता है। जैसे कि—मोरफिंग ।
7. प्रोसिजरल एनीमेशन (Procedural Animation)- प्रोसिजरल एनीमेशन में एनीमेशन के लिए प्रोडक्शन के लिए कन्सीडरेबल डाटा की आवश्यकता होती है। इस एनीमेशन के अन्तर्गत हम एनीमेटर के द्वारा स्पेसिफाइ किए गए डाटा की जगह एनीमेशन डाटा को कम्प्यूट करते हैं ।
8. सिम्यूलेशन (Simulation)- सिम्यूलेशन को साइन्टीफिक एनीमेशन की श्रेणी में वर्गीकृत कर सकते हैं। सिम्यूलेशन फिजिक्स के लॉज द्वारा कम्प्यूट किए गए डाटा को यूज करता है ।
9. कैमरा एनीमेशन (Camera Animation)- इस एनीमेशन के आर्किटैक्चरल वॉकथ्रोज के द्वारा स्पेसिफाइ करते हैं। इस एनीमेशन में केवल कैमरा मूव करता है।
फ्लैश एण्ड एनीमेशन (Animation and Flash)- मल्टीमीडिया कम्प्यूटर विज्ञान का वह क्षेत्र है जिसमें सामान्य टेक्स्ट के अलावा चित्र, चलचित्र और आवाज को भी कम्प्यूटर में इनपुट किया जा सकता है और इसकी प्रोसेसिंग करके मनचाहे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। इस तकनीक का प्रयोग वर्तमान समय में फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्र में किया जा सकता है।
इस कार्य के लिए अनेक सॉफ्टवेयर प्रयोग किए जाते हैं। फ्लैश के द्वारा किसी भी ऑब्जेक्ट को गतिमान बनाया जा सकता है। वर्तमान में फ्लैश के आठवें संस्करण का प्रयोग किया जाता है। फ्लैश के द्वारा निर्मित एनीमेशन को फिल्मों में और वेबसाइट्स पर भी प्रयोग कर सकते हैं।
इसके द्वारा शक्तिशाली प्रजेंटेशन का निर्माण भी किया जा सकता है। फ्लैश के अंतर्गत हम वेक्टर ग्राफिक्स और रास्टर ग्राफिक्स में दोनों का प्रयोग कर सकते हैं। वेक्टर ग्राफिक्स मैमोरी में बहुत कम जगह देते हैं जबकि रास्टर ग्राफिक्स में अधिक जगह की आवश्यकता होती है। अतः वेक्टर ग्राफिक्स का प्रयोग इसमें सबसे ज्यादा किया जाता है।
फ्लैश के अन्तर्गत ऐसे टूल्स होते हैं जिनकी सहायता से हम ड्राइंग्स बना सकते हैं तथा इसके साथ ही ड्राइंग में बाहर से इम्पोर्ट किए गए चित्रों को भी प्रयोग कर सकते हैं। जब फ्लैश के द्वारा किसी एनीमेशन का निर्माण किया जाता है तो वह फ्लैश एक फाइल बन जाता है। फ्लैश में बनी इस फाइल का एक्स्टेंशन fla होता है।
एक फ्लैश डॉक्यूमेंट के निम्न भाग
वह स्टैज जहाँ पर ग्राफिक्स, वीडियो, बटन आदि दिखाई पड़ते हैं।
लाइब्रेरी पैनल जिसके अन्तर्गत फ्लैश मीडिया एलीमेंट की लिस्ट प्रदर्शित करता है। यह लिस्ट फ्लैश डॉक्यूमेंट में उपयोग किए गए मीडिया एलिमेंट्स से संबंधित होती है।
टाइम लाइन के द्वारा फ्लैश में ग्राफिक्स अथवा ऑब्जेक्ट को कहाँ प्रदर्शित करना है इसका पता लगता है।
एक्शन स्क्रिप्ट कोड के द्वारा मीडिया एलिमेंटस में इन्ट्रेक्टिविटी को सम्मिलित कर सकते हैं। इसमें कार्य की आवश्यकतानुसार लॉजिक भी जोड़ सकते हैं।
(A) फ्लैश के द्वारा निम्न कार्य किए जा सकते हैं (Operations Performed By Flash)
(1) एनीमेशन
(2) गेम्स
(3) यूजर इन्टरफेस
(4) प्लेशेबल मैसेजिंग एरिया ।
(B) आवश्यक हार्डवेयर्स (Required Hardwares)- फ्लैश का उपयोग करने के लिए कम्प्यूटर सिस्टम में 3GHz का प्रोसेसर 512 MB रैम, 256 MB क्षमता का विडियो कार्ड तथा 80GB की हार्डडिस्क होनी आवश्यक है। इसे Pentium-III प्रोसेसर पर भी प्रयोग कर सकते हैं ।
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