Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
Class 10 Sanskrit Chapter 3 प्रस्तुत पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता‘ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24वें अध्याय से संकलित है। इसमें आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता, नीरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं।
तृतीयः पाठः व्यायामः सर्वदा पथ्यः (व्यायाम हमेशा लाभदायक है।) आचार्य सुश्रुतः
श्लोकों का अन्वय, शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद
(1) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम्।
तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः॥
अन्वय-
शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् (कथ्यते) । तत्कृत्वा तु देहं सुखम् समन्ततः विमृद्नीयात्।
कठिन शब्दार्थ-
शरीरायासजननम् | शारीरिक परिश्रम से उत्पन्न (गात्रे श्रमेणोत्पन्नम्। |
संज्ञितम् | नाम से कहा जाता है (नामधेयम्)। |
देहम् | शरीर की (शरीरम्)। |
समन्ततः | पूरी तरह से (सर्वतः)। |
विमृद्नीयात् | मालिश करनी चाहिए (मर्दनं कुर्यात्)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस पद्यांश में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बतलाते हुए तथा शरीर की मालिश करने की प्रेरणा देते हुए कहा है कि
हिन्दी अनुवाद-
शारीरिक परिश्रम से उत्पन्न (थकावट पैदा करने वाला) कार्य व्यायाम नाम से जाना जाता है अर्थात् उसे व्यायाम कहते हैं। उसे (व्यायाम को) करके सुखपूर्वक (सहज रूप से) शरीर की पूरी तरह से (शरीर के सभी अंगों की) मालिश करनी चाहिए।
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(2) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा॥
अन्वय-
(व्यायामेन) शरीरोपचयः, कान्तिः, गात्राणां सुविभक्तता, दीप्ताग्नित्वम्, अनालस्यम्, स्थिरत्वम्, लाघवम्, मृजा (च आयाति)।
कठिन शब्दार्थ-
शरीरोपचयः | शरीर में वृद्धि (गात्रस्य अभिवृद्धिः)। |
कान्तिः | चमक (आभा)। |
गात्राणाम् | शरीर के अंगों का (अङ्गानाम्)। |
सुविभक्तता | शारीरिक सौन्दर्य, सुगठन (शारीरिकं सौष्ठवम्)। |
दीप्ताग्नित्वम् | जठराग्नि का प्रदीप्त होना अर्थात् भूख लगना (जठराग्नेः प्रवर्धनम्)। |
अनालस्यम् | आलस्यहीनता, स्फूर्ति (आलस्यहीनता)। |
लाघवम् | हल्कापन (स्फूर्तिः) । |
मृजा | स्वच्छ करना (स्वच्छीकरणम्)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम करने से होने वाले लाभों का वर्णन किया है।
हिन्दी अनुवाद-
व्यायाम एवं मालिश करने से शरीर में वृद्धि, चमक, शारीरिक सौन्दर्य, भूख लगना, स्फूर्ति, स्थिरता तथा हल्कापन आदि आता है। (इसलिए मनुष्य को हमेशा नियमित व्यायाम/मालिश आदि करना चाहिए।)
(3) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
श्रमक्लमपिपासोष्ण शीतादीनां सहिष्णुता।
आरोग्य चापि परमं व्यायामादुपजायते ।।
अन्वय-
व्यायामात श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता यायच आरोग्यम् अपि उपजायते ।
कठिन शब्दार्थ-
श्रमक्लम | थकान, परिश्रम उत्पल शिथिलता (श्रमजनित शैथिल्यम)। |
पिपासा | प्यास (पातुम इच्छा)। |
शीतादीनाम | सर्दी अदि की (शैत्यादीनाम) । |
सहिष्णुता | सहन करने की शक्ति (सहवासो क्षमता)। |
परमम् | महान (अत्यधिकम)। |
आरोग्यम् | रोगहीनता (नीरोगता)। |
उपजायते | उत्पन्न होती है। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य‘ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम से सहिष्णुता, आरोग्य आदि लाभों का वर्णन करते हुए कहा कि
हिन्दी अनुवाद-
व्यायाम से थकान, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि की सहनशीलता और परम आरोग्यता अर्थात् रोगहीनता भी उत्पल होती है। (अतः हमें नियमित व्यायाम करना चाहिए।
(4) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम् ।
न च व्यायामिनं मत्यमर्दयन्त्यरयो बलात्॥
अन्वय-
च तेन सदृशं स्थौल्यापकर्षणम् किञ्चित् न अस्ति। न च व्यायामिनं मत्यम् अरयः बलात् अर्दयन्ति।
कठिन शब्दार्थ-
किञ्चित् | कुछ भी (किमपि)। |
स्थौल्यापकर्षणम् | मोटापे को दूर करने वाला (पीनताम् दूरीकरणम)। |
व्यायामिनम् | व्यायाम करने वाले को (व्यायामनिरतम्) । |
मत्यम् | मनुष्य को (मानवम्)। |
अरयः | शत्रुगण (शत्रवः)। |
अर्दयन्ति | कुचल डालते हैं (पीडयन्ति)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य’ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत व्यायाम के लाभ बतलाते हुए व्यायाम करने की प्रेरणा दी है।
हिन्दी अनुवाद-
और उस (व्यायाम) के समान मोटापे को दूर करने वाला कुछ भी (साधन) नहीं है। और व्यायाम करने वाले मनुष्य को शत्रुगण भी बलपूर्वक नहीं कुचल सकते हैं। (अत: हमें हमेशा व्यायाम करना चाहिए।)
(5) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥
अन्वय-
जरा च एनम् सहसा आक्रम्य न समधिरोहति। व्यायामाभिरतस्य च मांसं स्थिरीभवति।
कठिन शब्दार्थ-
जरा | बुढ़ापा। |
एनम् | उसकी (इमम्) । |
आक्रम्य | आक्रमण/हमला करके (आक्रमणं कृत्वा)। |
समधिरोहति | ऊपर, घेर लेती है। |
अभिरतस्य | तल्लीन होने वाले का (संलग्नस्य) । |
स्थिरीभवति | शान्त होता है (शान्तः जायते)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य’ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम के लाभ बतलाते हुए व्यायाम करने की प्रेरणा दी है।
हिन्दी अनुवाद-
और व्यायाम करने वाले को बुढ़ाया भी अचानक आक्रमण करके नहीं घेर लेता है तथा व्यायाम में तल्लीन होने वाले का मांस भी स्थिर (शान्त) रहता है। (अत: व्यायाम हमेशा लाभदायक होता है।)
(6) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुद्वर्तितस्य च।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगः
वयोरूपगुणैःहीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ।।
अन्वय-
व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुद्वर्तितस्य च व्याधयः वैनतेयम् उरगाः इव न उपसर्पन्ति। वयोरूपगुणैः हीनम् अपि सुदर्शनं कुर्यात्।
कठिन शब्दार्थ-
व्यायामस्विन्नगात्रस्य | व्यायाम करने से उत्पन्न पसीने से लथपथ शरीर वाले के (परिश्रमजन्यस्वेदसिक्तशरीरस्य)। |
पद्भ्यामुद्वर्तितस्य | दोनों पैरों से ऊपर उठने वाले व्यायाम करने वाले के (पादाभ्याम् उन्नमितस्य)। |
व्याधयः | रोग (रोगाः)। |
वैनतेयम् | गरुड़ के (गरुडम्)। |
उरगाः | सर्प, साँप (सर्पाः)। |
न उपसर्पन्ति | पास नहीं जाते हैं (समीपं न गच्छन्ति) । |
वयः | आयु (आयुः) । |
सुदर्शनम् | सुन्दर दिखाई देने वाला (शोभनीयम्)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य‘ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम के लाभ बतलाते हुए व्यायाम करने की प्रेरणा दी है।
हिन्दी अनुवाद-
व्यायाम करने से उत्पन्न पसीने से लथपथ शरीर वाले के और दोनों पैरों को ऊपर उठाकर व्यायाम करने वाले के पास रोग उसी प्रकार नहीं जाते हैं जिस प्रकार गरुड़ के पास साँप नहीं जाते हैं। अत: व्यायाम आयु, रूप और गुण से रहित व्यक्ति को भी सुन्दर दिखाई देने वाला बना देता है। (अतः यथाशक्ति व्यायाम हमेशा करना चाहिए।)
(7) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम्।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ।।
अन्वय-
नित्यं व्यायामंकुर्वतः विदग्धम् अविदग्धं वा विरुद्धमपि भोजनं निर्दोषं परिपच्यते ।
कठिन शब्दार्थ-
नित्यम् | हमेशा (सदैव) । |
कुर्वतः | करते हुए (कुर्वाणस्य)। |
विदग्धम् | भली प्रकार पके हुए (सुपक्वम्)। |
विरुद्धम् | आवश्यकता से अधिक भारी (प्रतिकूलम्)। |
परिपच्यते | अच्छी प्रकार से पच जाता है (जीर्यते)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य’ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम के लाभ बतलाते हुए व्यायाम करने की प्रेरणा दी है।
हिन्दी अनुवाद-
रोजाना व्यायाम करने वाले व्यक्ति को भली प्रकार पका हुआ अथवा नहीं पका हुआ और आवश्यकता से अधिक (विरुद्ध) भोजन भी बिना किसी दोष के पच जाता है।
(8) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम्।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः॥
अन्वय-
व्यायामः बलिनां स्निग्धभोजिनां हि सदा पथ्यः। स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः।
कठिन शब्दार्थ-
बलिनाम् | बलशालियों का (शक्तिशालिनाम्)। |
स्निग्धभोजिनाम् | मधुर भोजन करने वालों का (स्नेहयुक्त अशनानि खादताम्)। |
पथ्यः | कल्याणकारी, लाभदायक (हितकरः)। |
शीते | सर्दी में (शरदि)। |
स्मृतः | माना गया है (मन्यते)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य‘ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम के लाभ बतलाते हुए व्यायाम करने की प्रेरणा दी है।
हिन्दी अनुवाद-
व्यायाम बलशाली और मधुर भोजन करने वालों के लिए निश्चय ही हमेशा लाभदायक होता है। और वह (व्यायाम) सर्दी में और वसन्त में उनके लिए सबसे अधिक लाभदायक माना गया है।
(9) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
सर्वेष्वृतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा।
अन्वय-
आत्महितैषिभिः पुम्भिः सर्वेषु ऋतुषु अहरह: बलस्य अर्धेन व्यायामः कर्तव्यः, अतः अन्यथा (व्यायामः) हन्ति।
कठिन शब्दार्थ-
आत्महितैषिभिः | अपना कल्याण चाहने वालों के द्वारा (स्वकीयं हितम् अभिलाषुकैः)। |
पुम्भिः | पुरुषों के द्वारा (पुरुषैः) । |
अहरहः | प्रतिदिन (प्रतिदिनम्)। |
हन्ति | नष्ट कर देता है (नाशयति)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्य‘ शीर्थक पाठ में उद्धत किया गया है। यह पाठ मूलतः ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस श्लोक में आत्मकल्याण के लिए प्रतिदिन मनुष्य को व्यायाम अपने अर्द्धबल के अनुसार ही करने की प्रेरणा देते हुए, इससे अधिक व्यायाम को घातक बतलाया गया है।
हिन्दी अनुवाद-
अपना कल्याण (भला) चाहने वाले पुरुषों के द्वारा सभी ऋतुओं में प्रतिदिन अपने बल के आधे भाग के समान ही व्यायाम करना चाहिए, इससे अधिक व्यायाम मनुष्य को नष्ट कर देता है।
(10) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
हृदिस्थानास्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते।
व्यायाम कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम्॥
अन्वय-
व्यायाम कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः यदा वक्त्रं प्रपद्यते तबलार्धस्य लक्षणम्।
कठिन शब्दार्थ-
जन्तोः | मनुष्य के (प्राणिनः)। |
हृदिस्थानास्थितः | हृदय-स्थान में स्थित (हृदयस्थले विद्यमानः)। |
वक्त्रम् | मुख में (मुखम्)। |
प्रपद्यते | पहुँच जाती है (प्रवर्तते)। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः‘ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलत: यह पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता’ से संकलित है। इस पाठ में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम को लाभदायक बतलाते हुए मनुष्य को अपने बल के अर्द्ध भाग (सामर्थ्य) के अनुसार ही करने को कहा है तथा इससे अधिक व्यायाम को हानिकारक माना है। प्रस्तुत श्लोक में ‘बलार्द्ध’ का लक्षण दिया गया है।
हिन्दी अनुवाद-
व्यायाम करते हुए मनुष्य के हृदय-स्थान में स्थित वायु जब मुख में पहुंच जाती है तब वह बलार्थ का लक्षण है अर्थात् वह उसके बल का आधा भाग कहलाता है।
(11) Class 10 Sanskrit Chapter 3 Hindi translation
वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥
अन्वय-
वयोबलशरीराणि देश-काल-अशनानि च समीक्ष्य व्यायाम कुर्याद्, अन्यथा रोगम् आप्नुयात्।
कठिन शब्दार्थ-
वयः | उम्र (आयुः)। |
बल | ताकत (शक्तिः ) । |
शरीराणि | शरीर (गात्राणि)। |
देश | स्थान (स्थानम्)। |
काल: | समय (समयः)। |
अशनानि | भोजन (आहारा:/भोजनानि)। |
समीक्ष्य | अच्छी प्रकार से देखकर (परीक्ष्य)। |
आप्नुयात् | प्राप्त करें (लभताम्। |
प्रसंग-
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः‘ के ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः‘ शीर्षक पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुतसंहिता‘ से संकलित है। इस श्लोक में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम करने की विधि का वर्णन करते हुए कहा है कि
हिन्दी अनुवाद-
उम्र, बल, शरीर, देश, काल और भोजन का विचार करके अर्थात् देखकर ही व्यायाम करना चाहिए अन्यथा रोग प्राप्त करें अर्थात् इनको देखे बिना यदि व्यायाम किया जाता है तो वह हानिकारक होता है।
पाठ्यपुस्तकस्य प्रश्नोत्तराणि Class 10 Sanskrit Chapter 3
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) परमम् आरोग्य कस्मात् उपजायते?
उत्तरम्- व्यायामात्।
(ख) कस्य मांसं स्थिरीभवति?
उत्तरम्- व्यायामाभिरतस्य।
(ग) सदा कः पथ्यः?
उत्तरम्- व्यायामः।
(घ) कैः पुंभिः सर्वेषु ऋतुषु व्यायामः कर्तव्यः?
उत्तरम्- आत्महितैषिभिः।
(ङ) व्यायामस्विन्नगात्रस्य समीपं के न उपसर्पन्ति?
उत्तरम्- व्याधयः।
प्रश्न 2. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत- (अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) कीदृशं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते?
(किस प्रकार के कर्म को व्यायाम नाम से कहा जाता है?)
उत्तरम्- शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् कथ्यते।
(शारीरिक परिश्रम से उत्पन्न कर्म को व्यायाम नाम से कहा जाता है।)
(ख) व्यायामात् किं किमुपजायते?
(व्यायाम से क्या उत्पन्न होता है?)
उत्तरम्- व्यायामात् श्रमक्लमपिपासोष्णशीतादीनां सहिष्णुता आरोग्यं चोपजायते।
(व्यायाम से थकान, प्यास, गर्मी, सर्दी आदि की सहनशीलता और आरोग्य उत्पन्न होता है।)
(ग) जरा कस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति?
(बुढ़ापा किसके पास अचानक आक्रमण नहीं करता है?)
उत्तरम्- जरा व्यायामाभिरतस्य सकाशं सहसा न समधिरोहति।
(बुढ़ापा व्यायाम करने वाले के पास अचानक आक्रमण नहीं करता है।)
(घ) कस्य विरुद्धमपि भोजनं परिपच्यते?
(किसका विपरीत भोजन भी पच जाता है?)
उत्तरम्- नित्यं व्यायाम कुर्वतः विरुद्धमपि भोजनं परिपच्यते।
(हमेशा व्यायाम करने वाले का विपरीत भोजन भी पच जाता है।)
(ङ) कियता बलेन व्यायामः कर्तव्यः?
(कितने बल से व्यायाम करना चाहिए?)
उत्तरम्- अर्धबलेन व्यायामः कर्तव्यः।
(अर्ध बल से व्यायाम करना चाहिए।)
(च) अर्धबलस्य लक्षणम् किम्?
(अर्धबल का लक्षण क्या है?)
उत्तरम्- व्यायाम कुर्वतः जन्तोः हृदिस्थानास्थितः वायुः यदा वक्त्रं प्रपद्यते, तद् अर्धबलस्य लक्षणम्।
(व्यायाम करते हुए व्यक्ति के हृदय में स्थित वायु जब मुख तक पहुँच जाती है, तो वह अर्धबल का लक्षण है।)
प्रश्न 3. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकगतेषु पदेषु तृतीयाविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा-
व्यायामः ……………..’ हीनमपि सुदर्शनं करोति। (गुण)
व्यायामः गुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
(क) ………………. व्यायामः कर्त्तव्यः।
(ख) ………………. सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(ग) ……………….. विना जीवनं नास्ति।
(घ) सः …………….. खञ्जः अस्ति। (चरण)
(ङ) सूपकारः ……………….. भोजनं जिघ्रति। (नासिका)
उत्तरम्-
(क) बलस्याधेन व्यायामः कर्त्तव्यः।
(ख) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(ग) विद्यया विना जीवनं नास्ति।
(घ) सः चरणेन खञ्जः अस्ति।
(ङ) सूपकारः नासिकया भोजनं जिघ्रति ।
प्रश्न 4. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) शरीरस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते।
(ख) अरयः व्यायामिनं न अर्दयन्ति।
(ग) आत्महितैषिभिः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः।
(घ) व्यायाम कुर्वतः विरुद्धं भोजनम् अपि परिपच्यते।
(ङ) गात्राणां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति।
उत्तरम्- प्रश्ननिर्माणम्
(क) कस्य आयासजननं कर्म व्यायामः इति कथ्यते?
(ख) के व्यायामिनं न अर्दयन्ति?
(ग) कैः सर्वदा व्यायामः कर्तव्यः?
(घ) व्यायाम कुर्वतः कीदृशं भोजनम् अपि परिपच्यते?
(ङ) केषां सुविभक्तता व्यायामेन संभवति?
(अ) षष्ठ श्लोकस्य भावमाश्रित्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा-……………………….. समीपे उरगाः न …………… एवमेव व्यायामिनः जनस्य समीपं ………… न गच्छन्ति । व्यायामः वयोरूपगुणहीनम् अपि जनम् …………………….. करोति।
उत्तरम्- यथा- वैनतेयस्य समीपे उरगा: न गच्छन्ति, एवमेव व्यायामिनः जनस्य समीपं व्याधयः न गच्छन्ति।। व्यायामः वयोरूपगुणहीनम् अपि जनम् सुदर्शनं करोति।
प्रश्न 5. ‘व्यायामस्य लाभाः’ इति विषयमधिकृत्य पञ्चवाक्येषु एकम् अनुच्छेदं लिखत।
उत्तरम्- व्यायामः सर्वदा लाभदायकः भवति। व्यायामात् श्रमक्लम-पिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता तथा परमम् आरोग्यम् उपजायते। व्यायामिनं पुरुषम् अरय: बलात् न अर्दयन्ति। व्यायामाभिरतस्य च मांसं स्थिरीभवति। व्यायाम कुर्वतः विदग्धमविदग्धं वा भोजनमपि परिपच्यते।
(अ) यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) ‘तत्कृत्वा तु सुखं देहम्’ अत्र विशेषणपदं किम्?
उत्तरम्- सुखम्।
(ख) ‘व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः’ अस्मिन् वाक्ये क्रियापदं किम्?
उत्तरम्- उपसर्पन्ति।
(ग) ‘पुम्भिरात्महितैषिभिः’ अत्र ‘पुरुषैः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- पुम्भिः।
(घ) ‘दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा’ इति वाक्यात् ‘गौरवम्’ इति पदस्य विपरीतार्थकं पदं चित्वा लिखत।
उत्तरम्- लाघवम्।
(ङ) ‘न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणम्’ अस्मिन् वाक्ये ‘तेन’ इति सर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- व्यायामाय।
प्रश्न 6. (अ) निम्नलिखितानाम् अव्ययानाम् रिक्तस्थानेषु प्रयोगं कुरुत-
सहसा, अपि, सदृशं, सर्वदा, यदा, सदा, अन्यथा।
(क) …………. व्यायामः कर्त्तव्यः।
(ख) ………… मनुष्यः सम्यक्रुपेण व्यायामं करोति तदा सः ………………… स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दरा: ………..” सुन्दराः भवन्ति ।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्धक्यं ………………… नायाति।
(ङ) व्यायामेन ………… किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायाम समीक्ष्य एव कर्तव्यम् …. ………..” व्याधयः आयान्ति।
उत्तरम्-
(क) सर्वदा व्यायामः कर्त्तव्यः ।
(ख) यदा मनुष्यः सम्यक्रूरूपेण व्यायामं करोति तदा सः सदा स्वस्थः तिष्ठति।
(ग) व्यायामेन असुन्दराः अपि सुन्दराः भवन्ति।
(घ) व्यायामिनः जनस्य सकाशं वार्थक्यं सहसा नायाति ।
(ङ) व्यायामेन सदृशं किञ्चित् स्थौल्यापकर्षणं नास्ति।
(च) व्यायामं समीक्ष्य एव कर्तव्यम् अन्यथा व्याधयः आयान्ति।
(आ) उदाहरणमनुसृत्य वाच्यपरिवर्तनं कुरुत–
यथा-
कर्मवाच्यम्
आत्महितैषिभिः व्यायामः क्रियते।
कर्तृवाच्यम्
आत्महितैषिणः व्यायाम कुर्वन्ति।
(1) बलवता विरुद्धमपि भोजनं पच्यते।
(2) जनैः व्यायामेन कान्तिः लभ्यते।।
(3) मोहनेन पाठः पठ्यते।
(4) लतया गीतं गीयते।
उत्तरम्-
(1) कर्मवाच्यम्
बलवता विरुद्धमपि भोजनं पच्यते।
कर्तृवाच्यम्
बलवान् विरुद्धमपि भोजनं पचति ।
(2) कर्मवाच्यम्
जनैः व्यायामेन कान्तिः लभ्यते।
कर्तृवाच्यम्
जनाः व्यायामेन कान्तिम् लभन्ते।
(3) कर्मवाच्यम्
मोहनेन पाठः पठ्यते।
कर्तृवाच्यम्
मोहनः पाठं पठति।
(4) कर्मवाच्यम्
लतया गीतं गीयते।।
कर्तृवाच्यम्
लता गीतं गायति।
प्रश्न 7. (अ) अधोलिखितेषु तद्धितपदेषु प्रकृति/प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत-
उत्तरम्- मूलशब्दः (प्रकृतिः) प्रत्ययः
(क) पथ्यतमः पथ्य + तमप्
(ख) सहिष्णुता सहिष्णु + तल
(ग) अग्नित्वम् अग्नि + त्व
(घ) स्थिरत्वम् स्थिर + त्व
(ङ) लाघवम् लघु + अण
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
भावार्थ-लेखनम्
प्रश्न:-अधोलिखितश्लोकानां संस्कतेन भावार्थ लिखत–
(i) Class 10 Sanskrit Chapter 3
शरीरायासजननं ” …………………………………………. ” विमृद्नीयात् समन्ततः॥
उत्तरम्- भावार्थ:
व्यायामस्य महत्त्वं प्रतिपादयन् कथितं यत् शारीरिकपरिश्रमात् उत्पन्नं कर्म व्यायामः इति नाम्ना कथ्यते। व्यायामं कृत्वा सुखेन (सारल्येन) शरीरस्य सर्वतः मर्दनं (तैललेपनम्) करणीयम्।
(ii) Class 10 Sanskrit Chapter 3
शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां ……………………………………… लाघवं मृजा।
उत्तरम्- भावार्थ:
व्यायामात् शरीरे वृद्धिः, कान्तिः, शरीराङ्गानां सुगठनम्, जठराग्नेः प्रवर्धनम्, स्फूर्तिः, स्थिरत्वम्, लाघवम्, स्वच्छीकरणं च आयाति।
(iii) Class 10 Sanskrit Chapter 3
श्रमक्लमपिपासोष्ण …………………………… “व्यायामादुपजायते॥
उत्तरम्- भावार्थ:
व्यायामः अतीव लाभदायकः भवति। व्यायामात् श्रमजनितं शैथिल्यम्, पिपासा-तापशीतादीनां च सहिष्णुता उत्पन्ना भवति। व्यायामात् च परमम् आरोग्यम् अपि उत्पद्यते। अत एव नित्यं व्यायामः करणीयः ।
(iv) Class 10 Sanskrit Chapter 3
न चास्ति सदृशं तेन ” …………………………………….. मर्दयन्त्यरयो बलात॥
उत्तरम्- भावार्थ:
व्यायामेन सदृशं पीनतादूरीकरणसाधनं किञ्चिदपि नास्ति, न च व्यायामकर्तारं मनुष्यं शत्रवः बलात् अर्दनं कुर्वन्ति। अर्थात् व्यायामात् शरीरं स्फूर्तियुक्तं बलशाली, पराक्रमी च भवति।
(v) Class 10 Sanskrit Chapter 3
न चैनं सहसाक्रम्य ………………………………… व्यायामाभिरतस्य च।
उत्तरम्- भावार्थ:
य: नित्यं व्यायामं करोति, तं जनं वार्धक्यमपि सहसा आक्रमणं कृत्वा आरूढं न भवति। व्यायामे संलग्नस्य च जनस्य मांसं शान्तः (स्थिरम्) जायते।
(vi) Class 10 Sanskrit Chapter 3
व्यायामस्विनगात्रस्य………………………………………. वैनतेयमिवोरगाः॥
उत्तरम्- भावार्थ:
यथा सर्पाः गरुडस्य समीपं न गच्छन्ति, तथैव परिश्रमजन्यस्वेदसिक्तशरीरस्य पादाभ्याम् उन्नमितस्य च अर्थात् नित्यं व्यायामशीलस्य जनस्य समीपं रोगाः न गच्छन्ति, सः सदैव नीरोगः भवति।
(vii) Class 10 Sanskrit Chapter 3
व्यायाम कुर्वतो नित्यं ………………………………….. परिपच्यते॥
उत्तरम्- भावार्थ:
यः जनः नित्यं व्यायाम करोति तस्य सुपक्वम्, अपक्वम् वा प्रतिकूलं च भोजनं सरलतया (निर्दोषम्) जीर्यते परिपच्यते वा।
(viii) Class 10 Sanskrit Chapter 3
व्यायामो हि सदा पथ्यो …………………………….. “पथ्यतमः स्मृतः॥
उत्तरम्- भावार्थ:
व्यायामः सर्वेषां कृते लाभदायकः भवति, विशेषतः शक्तिशालिनां स्नेहयुक्त अशनानि खादताम् तु सदैव हितकरः भवति। व्यायामः च शरदि वसन्तकाले च तेषां कते त पथ्यतमः मन्यते।
संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि-
(अ) एकपदेन उत्तरत
प्रश्न 1. ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ इति पाठस्य लेखकः कः?
उत्तरम्- आचार्यसुश्रुतः।
प्रश्न 2. शरीरायासजननं कर्म किम् कथ्यते ?
उत्तरम्- व्यायामः।
प्रश्न 3. किम् कृत्वा देहं समन्ततः विमृदनीयात् ?
उत्तरम्- व्यायामम्।
प्रश्न 4. व्यायामात् केषां सुविभक्तता भवति?
उत्तरम्- गात्राणाम्।
प्रश्न 5. शीतादीनां सहिष्णुता कस्माद् उपजायते ?
उत्तरम्- व्यायामात्।
प्रश्न 6. केन सदृशं स्थौल्यापकर्षणं नास्ति?
उत्तरम्- व्यायामेन।
प्रश्न 7. शत्रवः कीदृशं मनुष्यं न अर्दयन्ति ?
उत्तरम्- व्यायामिनम्।
प्रश्न 8. व्यायामिनं का सहसाक्रम्य न समधिरोहति ?
उत्तरम्- जरा (वार्धक्यम्)।
प्रश्न 9. व्यायामाभिरतस्य किं स्थिरीभवति ?
उत्तरम्- मांसम्।
प्रश्न 10. सर्पाः कम् न उपसर्पन्ति?
उत्तरम्- वैनतेयम् (गरुडम्)।
प्रश्न 11. व्यायामस्विन्नगात्रस्य का: नोपसर्पन्ति?
उत्तरम्- व्याधयः।
प्रश्न 12. किं कुर्वतो विरुद्धमपि भोजनं परिपच्यते ?
उत्तरम्- व्यायामम्।
प्रश्न 13. बलस्यार्धन कः कर्तव्यः?
उत्तरम्- व्यायामः।
(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत-
प्रश्न 1. ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ इति पाठः कुतः समुद्धतः?
उत्तरम्- ‘व्यायामः सर्वदा पथ्यः’ इति पाठः ‘सुश्रुतसंहिता’ इति ग्रन्थात् समुदतः।
प्रश्न 2. व्यायाम कृत्वा किं कुर्यात् ?
उत्तरम्- व्यायामं कृत्वा सुखपूर्वकं देहं समन्ततः विमृदनीयात्।
प्रश्न 3. परमम् आरोग्यं कस्माद् उपजायते?
उत्तरम्- परमम् आरोग्यं व्यायामाद उपजायते।
प्रश्न 4. अरयः बलात् कंन अर्दयन्ति?
उत्तरम्- अरयः बलात् व्यायामिनं मानवं न अर्दयन्ति।
प्रश्न 5. कस्य मांसं स्थिरीभवति?
उत्तरम्- व्यायामाभिरतस्य मांसं स्थिरीभवति।
प्रश्न 6. कस्य व्याधयो नोपसर्पन्ति ?
उत्तरम्- व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितस्य च व्याधयो नोपसर्पन्ति।
प्रश्न 7. व्यायामः कैः हीनमपि सुदर्शनं करोति ?
उत्तरम्- व्यायामः वयोरूपगुणैः हीनमपि सुदर्शनं करोति।
प्रश्न 8. व्यायामः सदा केषां पथ्यः कथ्यते ?
उत्तरम्- व्यायामः सदा बलिनां स्निग्धभोजिनां च पथ्यः कथ्यते।
प्रश्न 9. व्यायामः कदा पथ्यतमः स्मृतः?
उत्तरम्- व्यायामः शीते वसन्ते च पथ्यतमः स्मृतः।
प्रश्न 10. आत्महितैषिभिः मानवैः कदा कश्च कर्त्तव्यः?
उत्तरम्- आत्महितैषिभिः मानवैः सर्वेष्वृतुषु प्रतिदिनं व्यायामः कर्त्तव्यः।
प्रश्न 11. कानि समीक्ष्य व्यायाम कुर्यात् ?
उत्तरम्- वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च समीक्ष्य व्यायामं कुर्यात्।
प्रश्ननिर्माणम् Class 10 Sanskrit Chapter 3
प्रश्न:-अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
- व्यायामं कृत्वा सुखं प्राप्यते।
- देहं समन्ततः विमृद्नीयात्।
- व्यायामेन अनालस्यं स्थिरत्वं च भवति।
- शरीरे कान्तिः व्यायामेन संभवति।
- उष्णशीतादीनां सहिष्णुता व्यायामादुपजायते।
- परमम् आरोग्यं व्यायामाद् उपजायते ।
- स्थौल्यापकर्षणं व्यायामेन सदृशं न किञ्चिदस्ति।
- अरयः व्यायामिनं मर्त्य न अर्दयन्ति।
- जरा व्यायामिनं सहसाक्रम्य न समधिरोहति।
- व्यायामाभिरतस्य मांसं स्थिरीभवति ।
उत्तरम्- प्रश्ननिर्माणम्
- व्यायामं कृत्वा किम् प्राप्यते?
- किम् समन्ततः विमदनीयात्?
- केन अनालस्यं स्थिरत्वं च भवति?
- शरीरे कान्ति: केन संभवति?
- केषां सहिष्णुता व्यायामादुपजायते?
- परमम् आरोग्यं कस्माद् उपजायते?
- स्थौल्यापकर्षणं केन सदृशं न किञ्चिदस्ति?
- अरयः कम् न अर्दयन्ति?
- का व्यायामिनं सहसाक्रम्य न समधिरोहति?
- कस्य मांसं स्थिरीभवति?