Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 शुचिपर्यावरणम्, प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यान्त्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं।

संस्कृतम् कक्षा 10 पठित अवबोधनम् शेमुषी द्वितीयो भागः मङ्गलम्

पाठ परिचय- किसी भी शुभ कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उस कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए ईश-वन्दना करना मंगलाचरण कहलाता है। भारतीय संस्कृति में काफी प्राचीन काल से ईश-वन्दना करने की परम्परा रही है। इस ईश-वन्दना में प्रायः देवी-देवताओं के माहात्म्य का गुणगान किया जाता है अथवा ईश-वन्दना करने वालों द्वारा अपने और अपने परिजनों सहित अपने वैभव (धन-सम्पत्ति) आदि की रक्षा और कल्याण की कामना की जाती है।

प्रस्तुत पाठ में ‘मङ्गलम्‘ के रूप में वेदों से दो मन्त्र संकलित हैं। इनमें प्रथम मन्त्र यजुर्वेद से तथा द्वितीय मन्त्र ऋग्वेद से ग्रहण किया गया है। प्रथम मन्त्र में जहाँ ईश-वन्दना करने वालों के द्वारा सौ वर्ष तक जीने की कामना की गई है, वहीं द्वितीय मन्त्र में वैचारिक सात्विकता और वैभव वृद्धि की कामना की गई है।

(1) Sanskrit Class 10 Chapter 1 Hindi translation

ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुकमुच्चरत् ।

पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतम् ।

शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतम् ।

अदीनाः स्याम शरदः शतम्। भूयश्च शरदः शतात् ॥ (यजुर्वेद 36.24)

अन्वय-

ॐ देवहितं तत् शुक्रं चक्षुः पुरस्तात् उच्चरत् । (वयं) शतं शरदः पश्येम। (वयं) शतं शरदः जीवेम। (वयं) शतं शरदः शृणुयाम। (वयं) शतं शरदः प्रब्रवाम। (वयं) शतं शरदः अदीनाः स्याम। च शतात् शरदः भूयः।

कठिन शब्दार्थ-

देवहितम् देवताओं द्वारा धारण किया हुआ।
चक्षुः नेत्र, आँख।
पुरस्तात् आगे, सर्वप्रथम, पहले स्थान पर, पूर्व में।
शरदः वर्ष ।
अदीनाः जो दीन नहीं हों, स्वावलम्बी।
भूयः फिर से।

हिन्दी अनुवाद/भावार्थ-

हे परमपिता परमात्मा! देवों द्वारा निरूपित यह शुक्ल वर्ण का नेत्र रूप (सूर्य) पूर्व दिशा में ऊपर उठ चुका है। हम सब सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक जीते रहें। सौ वर्षों तक सुनते रहें, सौ वर्षों तक शुद्ध रूप से बोलते रहें। सौ वर्षों तक स्वावलम्बी (अदीन) बने रहें और यह सब सौ वर्षों से भी अधिक चलता रहे।

(2) Sanskrit Chapter 1 Class 10 Hindi translation

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतो

ऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।

देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽसन्

अप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥ (ऋग्वेद 1.89.1)

अन्वय-

नः विश्वतः आ भद्राः क्रतवः यन्तु, अदब्धासः, अपरीतास, उद्भिदः (स्युः)। असन् अप्रायुवः । सदमिद् रक्षितारः देवाः दिवेदिवे यथा नः वृधे।

कठिन शब्दार्थ-

नः हमारे लिए।
भद्राः कल्याणकारी।
क्रतवः सङ्कल्प, विचार।
यन्तुः आएँ।
विश्वतः चारों ओर से।
उद्भिदः प्रकट करने वाले।

हिन्दी अनुवाद/भावार्थ-

हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके (अपरीतासः) एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले (उद्भिदः) हों। प्रगति को न रोकने वाले (अप्रायुवः) तथा सदैव रक्षा में तत्पर देवगण प्रतिदिन (सदैव) हमारी समृद्धि और कल्याण के लिए तत्पर रहें।

प्रथमः पाठः शुचिपर्यावरणम्  (पवित्र/शुद्ध पर्यावरण) कवि हरिदत्त शर्मा

पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ आधुनिक संस्कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इसमें कवि ने महानगरों की यान्त्रिक-बहुलता से बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह लौहचक्र तनमन का शोषक है, जिससे वायुमण्डल और भूमण्डल दोनों मलिन हो रहे हैं।

कवि महानगरीय जीवन से दूर, नदीनिर्झर, वृक्षसमूह, लताकुञ्ज एवं पक्षियों से गुजित वन-प्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्यक्त करता है।

पाठ के पद्यांशों का अन्वय, कठिन शब्दार्थ एवं सप्रसंग हिन्दी अनुवाद

(1) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

दर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।

शुचि-पर्यावरणम्॥

महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।

मनः शोषयत् तनः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥

दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम् । शचि…॥

अन्वय-

अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, प्रकृतिः एव शरणम्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)। महानगरमध्ये कालायसचक्रम् अनिशं चलत, मनः शोषयत, तनुः पेषयद् सदा वक्र भ्रमति। अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं नैव स्यात्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)।

कठिन शब्दार्थ-

जीवितम् जीवन (जीवनम्) ।
दुर्वहम् कठिन, दूभर (दुष्करम्) ।
जातम् हो गया है (यातम्)।
शुचि पवित्र, शुद्ध (पवित्रम्, शुद्धम्) ।
कालायसचक्रम् लोहे का चक्र (लौहचक्रम्) ।
अनिशम् दिन- रात (अहर्निशम्)।
शोषयत् सुखाते हुए (शुष्कीकुर्वत्)।
तनुः शरीर (शरीरम्)।
पेषयद् पीसते हुए (पिष्टीकुर्वन्)।
वक्रम् टेढ़ा (कुटिलम्)।
अमुना इससे (अनेन) ।
दुर्दान्तः भयानक से (भयङ्करैः)।
 दशनैः दाँतों से (दन्तैः)।
जनग्रसनम् मानव विनाश (जनभक्षणम्)।

प्रसंग-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से लिया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित काव्य ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इस अंश में महानगरों में बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कवि कहता है कि

हिन्दी अनुवाद-

इस संसार में जीवन अत्यधिक कठिन (दूभर) हो गया है, अतः प्रकृति की ही शरण में जाना चाहिए। पर्यावरण शुद्ध बना रहे। महानगरों के मध्य में प्रदूषणरूपी लौहचक्र दिन-रात चलता हुआ, मन को  सुखाता हुआ और शरीर को पीसता हुआ सदा टेढ़ा चलता है। इसके भयानक दाँतों से मानव-विनाश नहीं होना चाहिए। अत: पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए।

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(2) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।

वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्।।

यानानां पङ्क्तयो झनन्ताः कठिन संसरणम्। शुचि…॥

अन्वय-

शतशकटीयानं कज्जलमलिनं धूम मुञ्चति। वाष्पयानमाला ध्वानम् वितरन्ती संधावति। हि यानानाम्  अनन्ताः पङक्तयः (सन्ति), संसरणं कठिनम् (अस्ति)। शुचि पर्यावरणम् (स्यात् ।।

कठिन शब्दार्थ-

शतशकटीयानम् सैकड़ों मोटरगाड़िया (शकटीयानानां शतम्)।
कज्जलमलिनम् काजल जैसा मलिन (काला) (कज्जलेन मलिनम्)।
धूमम् धुआँ (वाष्पः)।
मुञ्चति छोड़ती है ।
वाष्पयानमाला रेलगाड़ी की पंक्ति (वाष्पयानानां पंक्तिः) ।
ध्वानम् कोलाहल (ध्वनिम्) ।
वितरन्तीदेती (ददती)।
संधावति तेज दौड़ती है (तीव्र धावति)।
संसरणम् चलना (सञ्चलनम्।

प्रसंग-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उदत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा विरचित काव्य ‘लसल्लतिका’ से संकलित है। इस अंश में महानगरों में वाहनों के कोलाहल एवं धुआँ से बढ़ते हुए प्रदूषण का वर्णन करते हुए कहा गया है कि

हिन्दी अनुवाद-

(महानगरों में) सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल के समान मलिन (काला) धुआँ छोड़ती रहती हैं। रेलगाड़ियों की पंक्ति कोलाहल करती हुई दौड़ती है। क्योंकि वाहनों की अनन्त पंक्तियाँ हैं, इसलिए चलना भी कठिन हो गया है। अत: पर्यावरण शुद्ध रहना चाहिए।

(3) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।

कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्।।

करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि… ॥

अन्वय-

(प्रदूषणेन) वायुमण्डलं भृशं दूषितम्, न हि निर्मलं जलम् (अस्ति)। भक्ष्यं कुत्सितवस्तुमिश्रितम् (अस्ति), धरातलं समलम् (अस्ति) । (अतः) जगति तु बहिरन्तः बहुशुद्धीकरणं करणीयम् । शुचि पर्यावरणं स्यात्।

कठिन शब्दार्थ-

वायुमण्डलम् वायुमण्डल (वातावरणम्)।
भृशम् अत्यधिक (अत्यधिकम्) ।
दृषितम् दूषित हो गया है (दोषपूर्णम्, अशुद्धम्)।
भक्ष्यम् भोज्य पदार्थ (खाद्यपदार्थम्)
धरातलम् भूमि (पृथ्वीतलम्)।
समलम् मलयुक्त, गन्दगी से युक्त (मलेन युक्तम्) ।
जगति संसार में (संसारे) ।
बहिः बाहर से (बाह्यतः)।
अन्तः अन्दर से (आन्तरिकम्)।
करणीयम् करना चाहिए (कर्तव्यम्)।

प्रसंग-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धत है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में संसार में अत्यधिक प्रदूषण से सम्पूर्ण वायुमण्डल, जल एवं खाद्य पदार्थ प्रदूषित हो जाने का वर्णन करते हुए कहा गया है कि

हिन्दी अनुवाद-

(प्रदूषण के कारण) वायुमण्डल अत्यधिक दृषित हो गया है, क्योंकि जल भी निर्मल नहीं है। खाद्य पदार्थ प्रदूषित वस्तुओं से मिश्रित हैं, सम्पूर्ण भूमि गन्दगी से युक्त है। अतः संसार में अन्दर और बाहर से अत्यधिक शुद्धीकरण करना चाहिए। पर्यावरण की शुद्धता बनी रहे।

(4) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।

प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्।।

एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात सञ्चरणम्। शुचि…॥

अन्वय-

कञ्चित् कालं माम् अस्मात् नगराद् बहुदूरम् नय। ग्रामान्ते पयःपूरं निर्झर-नदीम् प्रपश्यामि। एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे सञ्चरणं स्यात्। पर्यावरणं शुचि (स्यात्)।

कठिन शब्दार्थ-

कालम् समय (समयः) ।
नय ले जाओ (गमय, प्रापय)। 
ग्रामान्ते गाँव की सीमा। 
पयःपूरम् जल से भरा हुआ तालाब (जलाशयम)।
निर्झर झरना (प्रपात)।
प्रपश्यामि अच्छी प्रकार से देखूगा (सम्यक्तया अवलोकयामि)।
कान्तारे जंगल में (वन) ।  
स्यात् होना चाहिए (भवेत्)।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लमल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में कवि महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गांव की सीमा पर एवं वन-प्रदेश के  पवित्र  वातावरण में जाने की प्रेरणा देता हुआ कहता है कि

हिन्दी अनुवाद- कुछ समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले जाओ। गांव की सीमा पर मैं जल से भरा हुआ तालाब, झरने व नदी को अच्छी प्रकार से देखूगा। एकान्त जंगल में क्षण भर के लिए भी चाहे मेरा विचरण हो सके। पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए।

(5) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।

कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥

नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम् । शचि…॥

अन्वय-

(ग्रामान्ते) हरिततरूणां ललितलतानां रमणीया माला, समीरचालिता कुसुमावलिः मे वरणीया स्यात् । नवमालिका रसालं मिलिता, (तयोः) संगमनं रुचिरम् (जातम्)।

कठिन शब्दार्थ-

हरिततरूणाम हरे-भरे वक्षों की (हरितवृक्षाणाम्।
ललितलतानाम् सुन्दर लताओं की (रम्याणाम् वल्लरीणाम्)।
रमणीया सुन्दर (मनोहरा)।
समीरचालिता हवा से हिलती हुई (वायुचालिता)।
कुसुमावलिः फूलों की पंक्ति (पुष्पाणाम् पंक्तिः)।
मे मेरे लिए (मम)।
वरणीया ग्रहण करने योग्य (वरणयोग्या, ग्रहणीया)।
नवमालिका आम्र-मञ्जरी (आम्रमजरी)।
रसालम् आम (आम्रम्)।
संगमनम् मिलना (मिलनम्)।
रुचिरम् सुन्दर (सुन्दरम्)।

प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में महानगरों के प्रदूषित वातावरण से दूर गाँवों की सीमा पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण किया गया है।

हिन्दी अनुवाद-

(गांव की सीमा पर प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि) हरे-भरे वृक्षों की और सुन्दर लताओं की रमणीय पंक्तियाँ तथा वायु से हिलती हुई पुष्यों की पंक्तियाँ मुझे ग्रहण करनी चाहिए अर्थात् इनकी शोभा देखनी चाहिए। आम्रमञ्जरी आम के साथ मिल गई, उनका मिलन बहुत सुन्दर है। अतः पर्यावरण स्वच्छ होना चाहिए। वही एकमात्र मेरा आश्रय है।

(6) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

अयि चल बन्धो! खगकुलकलरव गुजितवनदेशम्।

पुर-कलरव सम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम् ॥

चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शचि… ॥

अन्वय-

अयि बन्यो! खगकुलकलरव गुजितवनदेशं चल। पुर-कलरव-सम्भ्रमितजनेभ्यः सुखसन्देशं धृत। जीवितरसहरणं चाकचिक्यजालं नो कुर्यात्।

कठिन शब्दार्थ-

खगकुलकलरवः पक्षियों के समूह की ध्वनि (पक्षिसमूहध्वनिः)।
गुजितम् गूंजते हए (गुज्जायमानम्)।
वनदेशम् वन प्रदेश को (अरण्यप्रदेशम्)।
पुरकलरवः नगर का कोलाहल (नगरस्य कोलाहलः)।
सम्भ्रमितम् भयभीत हुए (भयभीतम्)।
जीवितरसहरणम् जीवन के सुखरूपी रस का हरण (जीवनस्य सखस्यापहरणम्)।
चाकचिक्यजालम् चकाचौंध से युक्त संसार (कृत्रिमं प्रभावपूर्ण जगत्)।

प्रसंग-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका’ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में महानगरों के कोलाहलमय प्रदूषित वातावरण को त्यागकर पक्षियों की मधुर ध्वनि से पवित्र वन-प्रदेश में जाने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनुवाद-

(कवि कहता है कि) हे बन्धु! पक्षियों के समूह की ध्वनि से गुज्जायमान वन-प्रदेश में चलो। नगर के कोलाहल से  भ्रमित लोगों के लिए सुख का सन्देश दो। चकाचौंध से यह संसार (कहीं) जीवन के आनन्द को नष्ट न कर दे। अतः शुद्ध पर्यावरण ही एकमात्र आश्रय है।

(7) Class 10 Sanskrit Chapter 1 Hindi translation

प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।।

पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा ।।

मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि… ||

अन्वय-

लतातरुगुल्मा प्रस्तरतले पिष्टाः नो भवन्तु। पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात, कामये, नो जीवन्मरणम्।

कठिन शब्दार्थ-

लतातरुगुल्मा लता, वृक्ष और झाड़ा (लताश्च तरवश्च गुल्माश्च)।
प्रस्तरतले  पत्थरों के तल पर (शिलातले)।
पिष्टाः दबी हुई (दमिता)।
पाषाणी पर्वतमयी-पथरीली।
निसर्गे  प्रकृति में (प्रकत्याम)।
स्यात् नहीं होनी चाहिए (नहि भवेत्)।
कामये कामना करता हूँ (कामनां करोमि।

प्रसंग-

प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘शुचिपर्यावरणम्’ नामक पाठ से उद्धत किया गया है। मूलतः यह पाठ कवि हरिदत्त शर्मा द्वारा रचित ‘लसल्लतिका‘ रचना-संग्रह से संकलित है। इस अंश में कवि मानव-कल्याण और प्रकृति की पवित्रता की कामना करते हुए कहता है कि

हिन्दी अनुवाद-

लता, वृक्ष और झाड़ी पत्थरों के नीचे दबे हुए नहीं होने चाहिए। पथरीली सभ्यता प्रकृति में समाविष्ट नहीं होनी चाहिए। मैं मानव के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवन के नष्ट होने की नहीं। अत: हमारा पर्यावरण शुद्ध बना रहना चाहिए।

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